Saturday, December 8, 2007

अंधी महात्वाकांक्षाऐं

अंधी महात्वाकांक्षाऐं

जाऒ जाकर भटकी दिशाऒं को
सही राह पर लाऒ
दिल ने कर दी है बगावत
कोई तो उसे मनाऒ
अरे ॰॰॰!! ॰॰॰॰॰॰॰ हाथ
तुम्हे क्या हो गया ॰॰॰॰॰॰॰॰?
जो तुम रुक गये अचानक ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰?
पग ॰॰॰॰॰॰!!
तेरी डगर तो वहां है,
फिर इस राह ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰!!॰॰॰॰॰॰॰॰॰
कैसे अचानक ॰॰?
उफ॰॰॰!!!!॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰!!॰॰॰॰॰॰
आंखे भी मरुस्थल में,
॰॰॰ हरियाली देख रही हैं॰॰॰
कानों को भी सत्य बातें ॰॰॰॰
कटु लग रहीं हैं॰॰॰॰॰॰॰॰॰
रुको॰॰॰॰॰॰॰॰ ठहरो॰॰॰॰॰॰॰॰॰ सोचो॰॰??
चित्त को समझाऒ॰॰॰॰॰॰
अंधी महात्वाकांक्षाऒं के
॰॰॰॰॰॰॰॰॰फेर में मत आऒ
बचा है वक्त अभी भी ॰॰॰॰
लौऽऽट ॰॰॰॰॰आऒ॰॰॰
यथार्थ से दूर मत जाऒ॰॰॰॰॰॰॰॰
रुक जाऒ ॰॰॰॰॰॰रुक जाऒ
अंधी महात्वाकांक्षाऒं को॰॰॰॰॰॰
परास्त कर भगाऒ॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰॰।